महाराणा प्रताप जयंती: स्वाभिमान और स्वतंत्रता की अमर मिसाल को नमन
आज पूरे देश में महाराणा प्रताप की जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। भारतीय इतिहास के इस स्वर्णिम अध्याय को रचने वाले मेवाड़ के अमर योद्धा महाराणा प्रताप न केवल एक राजा थे, बल्कि वे आत्मसम्मान, स्वतंत्रता और स्वाभिमान के प्रतीक भी थे।
16वीं शताब्दी में जब पूरा भारत मुग़ल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार कर चुका था, तब महाराणा प्रताप ने अकबर की सत्ता को चुनौती दी और कभी भी गुलामी को स्वीकार नहीं किया। हल्दीघाटी का युद्ध सिर्फ एक सैन्य टकराव नहीं, बल्कि एक विचारधारा की लड़ाई थी – आत्मगौरव बनाम अधीनता।
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन के कठिनतम समय में भी जंगलों में रहकर, घास की रोटियाँ खाकर संघर्ष किया, पर अपने धर्म, संस्कृति और मातृभूमि से समझौता नहीं किया। उनके साथ उनका प्रिय घोड़ा चेतक भी वीरता की मिसाल बन गया, जिसने युद्ध में अपनी जान देकर अपने स्वामी को बचाया।
आज जब हम आज़ाद भारत में सांस ले रहे हैं, तो यह उन वीरों की तपस्या का परिणाम है जिन्होंने कभी भी पराधीनता को स्वीकार नहीं किया। महाराणा प्रताप की जयंती पर हम सबको उनके आदर्शों को जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए।
दो जयंती, एक वीर गाथा
महाराणा प्रताप की जयंती हर वर्ष दो बार मनाई जाती है। एक बार 9 मई को, जब उनका जन्म 1540 में हुआ था – यह तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार है। दूसरी बार हिन्दू पंचांग के अनुसार – ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को, जब वे पुष्य नक्षत्र में जन्मे थे। यही कारण है कि कुछ ही दिनों के अंतराल पर महाराणा प्रताप की जयंती दो बार मनाई जाती है, और दोनों ही अवसरों पर लोग उन्हें श्रद्धा से याद करते हैं।
उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि।
जय एकलिंग! जय मेवाड़! जय महाराणा प्रताप!
नेशनल कैपिटल टाइम्स ;