मोहिनी एकादशी व्रत कथा और महत्व
मोहिनी एकादशी – वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, यह तिथि अत्यंत पुण्यदायी और पापों का नाश करने वाली मानी गई है। इस दिन व्रत रखने से मनुष्य मोहजाल और पापों के समूह से मुक्त होकर जीवन में शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।
व्रत की पौराणिक कथा और मान्यता:
शास्त्रों में वर्णन है कि मोहिनी एकादशी का व्रत करने से हजार गौदान के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की कथा सुनना विशेष फलदायी माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक यह व्रत करता है, उसे जीवन में सुख, समृद्धि और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मोहिनी अवतार की कथा
बहुत समय पहले की बात है, जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। उनका उद्देश्य अमृत प्राप्त करना था, ताकि वे अजर-अमर हो सकें। समुद्र मंथन के बाद, अमृत का कलश उभरा और सभी की आँखें उस अमूल्य nectar पर टिक गईं। लेकिन, असुरों ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करते हुए देवताओं को वंचित कर लिया और अमृत को खुद ही हासिल कर लिया।
देवता अमृत से वंचित हो गए और वे असुरों के हाथों अपनी हार को सहन करने लगे। असुरों के अत्याचारों से देवताओं का मन निराश हो गया। देवता परेशान थे, क्योंकि अगर असुर अमृत पीने में सफल हो गए तो उनकी शक्ति और बढ़ जाएगी, और फिर देवताओं के लिए असुरों से मुकाबला करना असंभव हो जाएगा।
इस संकट की घड़ी में भगवान विष्णु ने एक अद्भुत योजना बनाई। उन्होंने अमृत की रक्षा करने और देवताओं का पुनः कल्याण करने का निश्चय किया। भगवान विष्णु ने अपने मोहक रूप में एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया, जिसे मोहिनी कहा गया। मोहिनी का रूप इतना आकर्षक था कि असुर उसकी सुंदरता पर मोहित हो गए और उन्होंने मोहिनी से अमृत वितरण करने का आग्रह किया।
मोहिनी ने असुरों के सामने एक प्यारी मुस्कान के साथ अपना रूप प्रस्तुत किया। उसकी सुंदरता और आकर्षण ने असुरों को पूरी तरह से सम्मोहित कर लिया। वे उसे देख कर ऐसे मंत्रमुग्ध हो गए, जैसे वे कुछ सोचने की स्थिति में ही नहीं थे। मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं अमृत का वितरण करूंगी, लेकिन यह तभी संभव होगा जब मैं इसे सही तरीके से वितरित करूं।”
असुरों ने पूरी तरह से विश्वास किया और देवताओं को छोड़ दिया, जबकि मोहिनी ने अपनी योजना को आगे बढ़ाया। वह पहले देवताओं को अमृत पिलाने लगी। देवता उसकी चालाकी को समझ गए, लेकिन वे चुपचाप उसकी बात मानते गए, क्योंकि वे जानते थे कि भगवान विष्णु ने ही उन्हें अमृत दिलवाना है।
तभी एक असुर, स्वर्भानु, जो बहुत ही चतुर था, उसने देवता का रूप धारण किया और देवताओं की पंक्ति में जाकर बैठ गया। वह भी अमृत पीने का प्रयास करने लगा। भगवान सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया और तुरंत संकेत किया। भगवान विष्णु ने तुरन्त सुदर्शन चक्र से स्वर्भानु का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन स्वर्भानु ने अमृत का एक बूंद जरूर पी लिया था। यही कारण था कि वह अमर हो गया।
स्वर्भानु का सिर राहु और उसका धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कालांतर में राहु और केतु को नवग्रहों में गिना गया। ये दोनों ग्रह अब भी ज्योतिष शास्त्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भगवान विष्णु की चतुराई और मोहिनी रूप में उनकी बुद्धिमत्ता ने देवताओं को अमृत दिलवाया और असुरों को उनकी हानि का अहसास कराया। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने धर्म की विजय और असुरों की हार को सुनिश्चित किया। इस कथा का संदेश है कि कभी-कभी भगवान अपनी योजनाओं को लागू करने के लिए किसी विशेष रूप में प्रकट होते हैं, और अच्छाई हमेशा बुराई पर विजय प्राप्त करती है।
दान का महत्व:
मोहिनी एकादशी के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन श्रद्धा अनुसार वस्त्र, अन्न, फल, जल, दक्षिणा और विशेष रूप से गौदान करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
नेशनल कैपिटल टाइम्स ;