राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस: जब ‘स्टील फ्रेम’ देश की रीढ़ बन जाता है -आज की नीतियों, चुनौतियों और भरोसे के बीच
नई दिल्ली।
आज राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस के अवसर पर देशभर में उन अफसरों को सम्मान और आभार प्रकट किया जा रहा है, जो संविधान की शपथ लेकर हर परिस्थिति में राष्ट्र और नागरिकों की सेवा में जुटे रहते हैं। न उनका कार्य समय निर्धारित होता है, न ही परिस्थितियाँ सदैव अनुकूल होती हैं, लेकिन उनका कर्तव्यबोध हमेशा अडिग रहता है।,
जिनकी पहचान न तो उनके चेहरे से होती है और न ही सोशल मीडिया फॉलोअर्स से-बल्कि उनके फैसलों, नीतियों और जमीन पर उनके असर से होती है।
21 अप्रैल 1947 को भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने सिविल सर्वेंट्स को “देश का स्टील फ्रेम” कहा था। तभी से हर साल इस तारीख को उनकी बात को याद करते हुए यह दिन मनाया जाता है
सिविल सेवक न केवल नीति-निर्माता होते हैं, बल्कि जमीन पर बदलाव लाने वाले अदृश्य नायक भी होते हैं। कभी बाढ़ में राहत बाँटते हैं, तो कभी महामारी के दौरान ज़िंदगियाँ बचाने के लिए दिन-रात जुटे रहते हैं। वे अपने परिवार से पहले देश को प्राथमिकता देते हैं और बिना प्रचार के, निस्वार्थ भाव से कार्य करते हैं।
इनकी कलम से नीतियाँ बनती हैं, योजनाएँ आकार लेती हैं और देश की जड़ें और मज़बूत होती हैं। जब किसी नागरिक को न्याय, सहायता या मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, तो उसकी नज़र सबसे पहले एक ईमानदार सिविल सर्वेंट पर जाती है।
राष्ट्रीय सिविल सेवा दिवस केवल अफसरों का दिन नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति का दिन है जो व्यवस्था में भरोसा रखता है और इसे बेहतर बनाने के लिए योगदान देता है।
आज, पूरे देश की ओर से और नेशनल कैपिटल टाइम्स , उन सभी सिविल सेवकों को नमन करता है जिन्होंने सेवा को पद से बड़ा माना और देशवासियों के अधिकारों और अपेक्षाओं की रक्षा को अपना परम कर्तव्य बनाया। यही वजह है कि आज भी व्यवस्था में विश्वास कायम है – क्योंकि वे हैं।
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