गंगा सप्तमी पर श्रद्धा की बयार, घाटों पर उमड़ा आस्था का सैलाब
आज देशभर में गंगा सप्तमी का पावन पर्व श्रद्धा, भक्ति और धार्मिक उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। यह पर्व हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन माँ गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ था।
सुबह से ही उत्तर भारत के प्रमुख गंगा तटों – हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, गंगोत्री और ऋषिकेश – पर लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए उमड़ पड़े। गंगा मैया के जयकारों से घाट गूंज उठे और भक्तों ने डुबकी लगाकर पापों के नाश और मोक्ष की प्राप्ति की कामना की।
इस दिन गंगा स्नान, जप, तप और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गंगा जल का केवल स्पर्श भी आत्मा को शुद्ध कर देता है। इसी आस्था के साथ भक्तजन सुबह से ही गंगा तटों पर एकत्र हुए और विशेष पूजा-अर्चना की।
पर्व के अवसर पर एक पवित्र श्लोक का उच्चारण भी किया गया:
“गंगां वारि मनोहारि मुरारिचरणच्युतं ।
त्रिपुरारिशिरश्चारि पापहारि पुनातु मां ॥”
अर्थात – जो गंगाजल मनोहर है, मुरारी (भगवान विष्णु) के चरणों से प्रकट हुआ है, त्रिपुरासुर के विनाशक शिव के सिर पर सुशोभित है और समस्त पापों का नाश करने वाला है – वह हमें पवित्र करे।
देशभर में मंदिरों और घाटों पर भव्य गंगा आरती का आयोजन किया गया।
गंगा सप्तमी न सिर्फ धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह प्रकृति, पवित्रता और जीवन के प्रति श्रद्धा का प्रतीक भी है।
अक्सर भक्तों को कंफ्यूजन होता है कि गंगा सप्तमी और गंगा दशहरा दोनों एक ही पर्व होते हैं. गंगा सप्तमी हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है. जबकि ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाने का विधान है.
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