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जेएनयू में ‘कुलपति’ नहीं, अब ‘कुलगुरु’ होगा: शब्द नहीं, सोच में भी बदलाव

जेएनयू में 'कुलपति' नहीं, अब 'कुलगुरु' होगा: शब्द नहीं, सोच में भी बदलाव

जेएनयू में ‘कुलपति’ नहीं, अब ‘कुलगुरु’ होगा: शब्द नहीं, सोच में भी बदलाव

नई दिल्ली – जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में अब ‘कुलपति’ के स्थान पर ‘कुलगुरु’ शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। यह ऐतिहासिक निर्णय विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (Executive Council) की बैठक में लिया गया, जिसमें वर्तमान कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित द्वारा यह प्रस्ताव रखा गया था।

‘कुलगुरु’ शब्द सिर्फ नाम नहीं, परंपरा का प्रतीक
प्रोफेसर शांतिश्री ने यह स्पष्ट किया कि यह बदलाव केवल शब्दों का नहीं है, बल्कि एक विचारधारा और सांस्कृतिक चेतना से जुड़ा है। ‘कुलगुरु’ शब्द भारतीय परंपरा से जुड़ा है, जहाँ विश्वविद्यालयों को ज्ञान के केंद्र और शिक्षकों को गुरु के रूप में सम्मानित किया जाता है। इससे आधुनिक शिक्षा तंत्र को भारतीय दर्शन और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

एक नई शुरुआत या विवाद की आहट?
जेएनयू जैसे संस्थान में इस तरह के निर्णयों को अकसर राजनीतिक और वैचारिक दृष्टिकोण से भी देखा जाता है। हालांकि इस निर्णय को कार्यकारी परिषद की मंज़ूरी मिल गई है, फिर भी यह देखना दिलचस्प होगा कि शिक्षाविदों, छात्रों और समाज में इस बदलाव को किस तरह से लिया जाता है।

 

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