केदारनाथ यात्रा में एंबुलेंस का दुरुपयोग मामला: तीर्थयात्रियों ने भीड़ से बचने के लिए अपनाया ‘एमरजेंसी शॉर्टकट’
उत्तराखंड के केदारनाथ धाम की पवित्र यात्रा के दौरान एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां कुछ तीर्थयात्रियों ने लंबी कतारों और भीड़ से बचने के लिए आपातकालीन एंबुलेंस सेवाओं का दुरुपयोग किया। यह मामला रुद्रप्रयाग जिले के सोनप्रयाग में उजागर हुआ, जहाँ पुलिस ने दो एंबुलेंस को रोका और जांच में चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई।
शनिवार को सोनप्रयाग के पास एक्रो ब्रिज के निकट, केदारनाथ मंदिर की ओर जा रही दो एंबुलेंस को रोककर पुलिस ने जांच की। संदेह इस बात को लेकर हुआ कि गौरीकुंड में न तो कोई अस्पताल है, न ही किसी आपातकालीन मेडिकल केस की जानकारी थी। जब एंबुलेंस की तलाशी ली गई, तो पता चला कि उनमें न तो कोई बीमार व्यक्ति था, न स्ट्रेचर, और न ही कोई मेडिकल उपकरण।
तीर्थयात्रियों ने ली ‘एम्बुलेंस टैक्सी’ सेवा
जांच में पता चला कि इन एंबुलेंसों को हरिद्वार निवासी निखिल विल्सन मसीह और अमरोहा के कृष्ण कुमार चला रहे थे। उन्होंने स्वीकार किया कि एंबुलेंस किराए पर दी गई थी – तीर्थयात्रियों को भीड़ और लंबी लाइन से बचाकर सीधे आगे पहुंचाने के लिए। एक एंबुलेंस वातानुकूलित लग्ज़री वाहन थी, जिसे एक यात्री ने विशेष रूप से बुक किया था, जबकि दूसरी में दो यात्री पहले से मौजूद थे और तीन अन्य लोगों को रास्ते में बैठा लिया गया, जिससे यह साझा टैक्सी जैसी बन गई।
पुलिस की सख्ती, चालान और जब्ती
सोनप्रयाग और गौरीकुंड के बीच की दूरी सामान्यतः पैदल यात्रा या शटल सेवा के माध्यम से तय की जाती है, लेकिन इन एंबुलेंसों ने इस नियम की अनदेखी करते हुए सीधे रास्ते का फायदा उठाने की कोशिश की। पुलिस ने मौके पर ही दोनों एंबुलेंस को जब्त कर लिया और मोटर वाहन अधिनियम के तहत चालान भी काटा।
हालांकि, पुलिस के पहुँचने से पहले ही एंबुलेंस में सवार तीन तीर्थयात्री भीड़ का फायदा उठाकर गायब हो गए। ड्राइवरों ने सफाई दी कि वे सिर्फ वाहन मालिकों के निर्देशों का पालन कर रहे थे।
पुलिस की चेतावनी और नैतिक सवाल
सोनप्रयाग में तैनात एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि अगर कोई वाकई बीमार होता, तो उसे गौरीकुंड नहीं, बल्कि सोनप्रयाग, रामपुर या रुद्रप्रयाग जैसे इलाज केंद्रों की ओर ले जाया जाता। उन्होंने तीर्थयात्रियों से अपील की कि वे इस प्रकार की नैतिकता विरोधी हरकतों से बचें, क्योंकि इससे न सिर्फ नियमों का उल्लंघन होता है, बल्कि आपातकालीन सेवाओं की विश्वसनीयता भी खतरे में पड़ती है।