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सावन: शिवमय ऋतु का उत्सव, साधना का पर्व और आत्मशुद्धि का अवसर

सावन: शिवमय ऋतु का उत्सव, साधना का पर्व और आत्मशुद्धि का अवसर

सावन: शिवमय ऋतु का उत्सव, साधना का पर्व और आत्मशुद्धि का अवसर

सनातन संस्कृति में श्रावण मास अर्थात सावन का अत्यंत विशेष महत्व है। यह केवल एक ऋतु परिवर्तन का समय नहीं, बल्कि मन, वाणी और कर्म से भगवान शिव की आराधना, आत्मशुद्धि, प्रकृति से जुड़ाव, और सात्विक जीवनशैली को अपनाने का एक दिव्य अवसर है।

 सावन का धार्मिक महत्व

श्रावण मास की शास्त्रों में व्यापक व्याख्या की गई है। विशेषकर स्कंद पुराण, शिव पुराण, लिंग पुराण, और पद्म पुराण में इस माह की उपासना का महात्म्य वर्णित है।

क्यों विशेष होता है श्रावण मास?

सावन पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित मास है।

समुद्र मंथन की कथा के अनुसार जब हलाहल विष निकला तो भगवान शिव ने ही उसे अपने कंठ में धारण किया था। इससे उनका कंठ नीला (नीलकंठ) हो गया।

शिव की पीड़ा शांत करने के लिए देवों ने गंगाजल अर्पित किया, और तभी से श्रावण में जलाभिषेक की परंपरा शुरू हुई।

शिव-भक्ति की विधियाँ: तप, व्रत और साधना

🕉️ सावन सोमवार व्रत

सावन में हर सोमवार को व्रत रखना अत्यंत फलदायक माना जाता है।

यह व्रत सौभाग्य, आरोग्य, और मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है।

इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भस्म और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है।

कांवड़ यात्रा

उत्तर भारत में गंगाजल लेने वाले कांवड़िए, सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं।

यह यात्रा त्याग, तप, सेवा और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण है।

कहते हैं, जो सच्चे मन से कांवड़ यात्रा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

 प्रकृति और जीवनशैली से जुड़ा यह पर्व

सावन केवल पूजा या व्रत का महीना नहीं, यह प्रकृति के साथ सामंजस्य, सात्विक आहार और शुद्ध जीवनचर्या को अपनाने का समय भी है।

आयुर्वेद के अनुसार

वर्षा ऋतु में जठराग्नि (पाचन शक्ति) मंद पड़ती है।

सावन में व्रत और हल्के सात्विक आहार से शरीर शुद्ध होता है।

नीम, तुलसी, गिलोय जैसे औषधीय पौधों का सेवन विशेष रूप से लाभकारी माना गया है।

 पर्यावरणीय दृष्टिकोण से

सावन में हरियाली और जलधाराएँ प्रकृति के पुनरुत्थान का प्रतीक हैं।

इस मास में वृक्षारोपण, जल संरक्षण, और पर्यावरणीय संतुलन को बढ़ावा देना सनातन परंपरा का हिस्सा रहा है।

शिव तांडव और सावन का भाव

> जटाटवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्॥
— शिव तांडव स्तोत्र

अर्थात: हे नीलकंठ! आपकी जटाओं से बहता जल उस पवित्र सावनी जलधार जैसा है जो आत्मा को भी पावन कर देता है। यह श्लोक केवल शिव की छवि नहीं खींचता, बल्कि सावन की शुद्धता और शीतलता की अनुभूति भी कराता है।

महिलाएं और श्रावण

महिलाएं इस महीने में मंगला गौरी व्रत, सोमवार व्रत, और हरितालिका तीज करती हैं।

ये व्रत पति की दीर्घायु, परिवार की समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए होते हैं।

हाथों में मेंहदी, माथे पर बिंदिया, शिव-पार्वती की पूजा — यह सब भारतीय स्त्री-संस्कारों का जीवंत रूप है।

 आध्यात्मिक ऊर्जा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वैज्ञानिक रूप से सावन में वातावरण ऋणायन (Negative Ionization) की स्थिति में होता है, जिससे ध्यान, मंत्रजप, और भक्ति की ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है।

यही कारण है कि इस मास में एक साधारण जप भी हजारगुना फलदायी होता है।

 निष्कर्ष: सावन — केवल ऋतु नहीं, एक साधना है

सावन केवल बारिश और हरियाली का समय नहीं, यह शिवमयी जीवन जीने का निमंत्रण है। यह मास हमें सिखाता है कि:

हम भीतर से निर्मल हों (विचारों से),

बाहर से नम्र हों (व्यवहार से),

और अपने कर्म से समर्पित हों (कर्तव्य से)।

 सावन का संदेश:

“जहाँ संयम है, वहाँ शिव हैं।
जहाँ त्याग है, वहाँ त्रिपुरारी हैं।
जहाँ प्रेम है, वहाँ परमेश्वर स्वयं वास करते हैं।”

🕉 ॐ नमः शिवाय
हर-हर महादेव! 🚩

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Rudra ji