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‘क्योंकि सास भी कभी..’ की टीवी पर वापसी, स्मृति इरानी के इस शो पर क्यों उठे थे सवाल

‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ पहली बार 2000 के दशक के मध्य में टीवी पर आया था और अब 25 साल बाद उसकी फिर वापसी हो गई है.

यह वह दौर था जब भारत के क़स्बों, शहरों में हिंदी सीरियल देखने वाले लोग रात को 10.30 बजे कामकाज निपटा, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ देखने के लिए जुटते थे.

इसे देखना एक तरह का पारिवारिक, सामूहिक उपक्रम था.

अब क़रीब 25 साल बाद, दर्शकों ने स्मृति इरानी जैसे कुछ पुराने चेहरों और कई नए चेहरों के साथ टीवी सेट पर ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी- सीज़न 2’ देखा है.

एक ओर जहाँ इस सीरियल ने कामयाबी की नई इबारतें लिखीं, वहीं इसकी आलोचना भी होती रही है कि औरतों के मामलों में इस शो ने पिछड़ी सोच को पर्दे पर लाने का ट्रेंड शुरू किया.

वैसे भारत के बाहर भी यह सीरियल बहुत मशहूर रहा है. वह भी बिना किसी सोशल मीडिया के.

‘सॉफ्ट पावर ऑफ़ इंडियन टेलीविज़न शोज़ इन नेपाल’ नाम के शोध पत्र में डंबर राज भट्टा ने लिखा है, “सीरियल का असर यह था कि नेपाल में शहरी औरतें कहती थीं कि उन्हें तुलसी जैसी बहू चाहिए. मेरी एक रिश्तेदार ने कहा था कि तुलसी जैसी बहू हो जो बड़ों की हर बात माने.”

दारी भाषा में डब होकर अफ़ग़ानिस्तान में प्रसारित होने वाला यह पहला भारतीय सीरियल बना. वहाँ यह तुलसी नाम से मशहूर था. वहाँ यह क़िस्सा मशहूर था कि जब लोग तुलसी देख रहे होते थे, चोर ठीक उसी समय चोरी करते थे क्योंकि उन्हें पता था कि लोग टीवी पर टकटकी लगाए बैठे होंगे.

आपने एक बेहद दिलचस्प और प्रभावशाली यात्रा का ज़िक्र किया है — स्मृति ईरानी की एक टेलीविज़न बहू से एक प्रभावशाली राजनेता बनने तक की कहानी।

📺 ‘तुलसी विरानी’ से राजनीति तक का सफ़र:

1. टेलीविज़न स्टारडम (2000-2008):
स्मृति ईरानी को सबसे पहले लोकप्रियता मिली स्टार प्लस के मेगाहिट सीरियल ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में तुलसी विरानी के किरदार से।

  • यह किरदार भारत के लाखों घरों में एक आदर्श बहू की पहचान बन गया।

  • “घर-घर की रानी, तुलसी विरानी” जैसे नारे केवल टीवी की स्क्रीन तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने स्मृति ईरानी की सार्वजनिक छवि गढ़ दी।

2. राजनीति में आगमन (2003-2004):

  • 2003 में उन्होंने बीजेपी जॉइन की।

  • 2004 में पार्टी ने उन्हें चांदनी चौक लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया।

  • वे चुनाव हार गईं, लेकिन पार्टी से जुड़ी रहीं और प्रचार अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाती रहीं।

3. पार्टी में सक्रिय भूमिका:

  • वक्त के साथ वे भाजपा की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं।

  • संगठन में अपने लगातार काम के दम पर पार्टी में स्थायी और मजबूत स्थान बनाया।

4. मंत्री पद और लोकसभा की जीत (2014-2019):

  • 2014 में उन्होंने अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा — हालांकि हारीं, लेकिन उनके संघर्ष और प्रदर्शन को व्यापक सराहना मिली।

  • उसी साल उन्हें मोदी सरकार में HRD मंत्री बनाया गया।

  • बाद में उन्होंने सूचना और प्रसारण, टेक्सटाइल, और फिर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालय संभाले।

5. 2019 में ऐतिहासिक जीत:

  • 2019 में उन्होंने अमेठी से राहुल गांधी को हराकर इतिहास रच दिया।

  • यह जीत कांग्रेस की पारंपरिक सीट पर भाजपा के लिए एक बड़ा प्रतीकात्मक पल था।

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Rudra ji