⚖️ Supreme Court का सख्त रुख: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज को आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोका गया
🧑⚖️ मामला किससे जुड़ा है?
-
न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार, इलाहाबाद हाईकोर्ट
🔍 मूल प्रकरण क्या था?
-
जस्टिस प्रशांत कुमार ने धारा 406 (विश्वासघात) के तहत जारी समन को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी।
-
उन्होंने कहा था कि अगर धन की वसूली का मामला है तो सिविल मुकदमे का रास्ता अपनाया जा सकता है, आपराधिक प्रक्रिया नहीं।
🚨 सुप्रीम कोर्ट की आपत्ति:
-
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने इस आदेश को:
-
“सबसे खराब और गलत आदेशों में से एक” बताया।
-
“चौंकाने वाला” और “न्यायिक प्रक्रिया की मूलभूत समझ के विरुद्ध” कहा।
-
-
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि:
“कोर्ट को पहले देखना चाहिए कि मामला सिविल प्रकृति का है या वास्तव में आपराधिक।”
⚠️ सुप्रीम कोर्ट का आदेश:
बिंदु | विवरण |
---|---|
🛑 प्रतिबंध | जस्टिस प्रशांत कुमार को अब आपराधिक मामलों की स्वतंत्र सुनवाई नहीं सौंपी जाएगी। |
👥 निगरानी | उन्हें अब से सीनियर और अनुभवी जज के साथ डिवीजन बेंच में बैठाया जाएगा। |
🔄 पुन: सुनवाई | संबंधित मामला अब हाईकोर्ट की दूसरी एकल पीठ को दोबारा सुनवाई के लिए सौंपा गया है। |
🧭 इस फैसले का व्यापक संदेश:
-
यह फैसला भारतीय न्यायपालिका में जवाबदेही और गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में एक कड़ा संदेश है।
-
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि न्यायाधीशों की जिम्मेदारी सिर्फ फैसले देना नहीं, बल्कि फैसलों की न्यायिक गुणवत्ता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
-
यह कदम न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए जरूरी बताया गया।
यह मामला दर्शाता है कि सुप्रीम कोर्ट अब जजों की न्यायिक समझ और क्षमता पर भी खुलकर सवाल उठा रहा है, जब वह मानता है कि न्यायिक प्रक्रिया से समझौता हुआ है। यह भारतीय न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को मजबूत करने वाला एक ऐतिहासिक कदम है।