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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल: सेवा, संगठन और राष्ट्रभक्ति की शताब्दी यात्रा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल: सेवा, संगठन और राष्ट्रभक्ति की शताब्दी यात्रा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल: सेवा, संगठन और राष्ट्रभक्ति की शताब्दी यात्रा

नई दिल्ली।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh – RSS) ने अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर से शुरू हुआ यह संगठन आज शताब्दी वर्ष मना रहा है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित RSS ने बीते एक सदी में समाज सेवा, शिक्षा, संस्कृति, राजनीति और राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र में गहरा योगदान दिया है।

RSS की स्थापना कब और क्यों हुई?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को नागपुर में हुई थी। उस समय भारत अंग्रेजों की गुलामी में था और समाज जातीय एवं सांप्रदायिक विभाजनों से जूझ रहा था। डॉ. हेडगेवार ने संघ की नींव इस सोच के साथ रखी कि भारत को मजबूत बनाने के लिए समाज में एकता, अनुशासन और राष्ट्रभक्ति जरूरी है।

शाखा से बना दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन

RSS की कार्यप्रणाली की सबसे खास पहचान इसकी शाखाएं हैं।

शाखाओं में शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण दिया जाता है।

राष्ट्रभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी के संस्कार सिखाए जाते हैं।

अनुशासन और संगठनबद्धता पर जोर दिया जाता है।

इन्हीं शाखाओं के दम पर आज RSS दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है।

सेवा कार्यों में RSS का योगदान

पिछले 100 वर्षों में RSS ने केवल विचारधारा तक खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि हर संकट की घड़ी में समाज की सेवा की।

भूकंप, बाढ़ और आपदा में राहत कार्य

कोरोना महामारी के दौरान भोजन, दवाइयां और मदद पहुंचाना

शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सेवा भारती, विद्या भारती जैसे संगठनों के माध्यम से कार्य

संघ परिवार का विस्तार

RSS ने बीते शताब्दी में एक विशाल “संघ परिवार” खड़ा किया।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) – छात्र संगठन

भारतीय मजदूर संघ – श्रमिक संगठन

विश्व हिंदू परिषद (VHP) – सांस्कृतिक और धार्मिक जागरण

सेवा भारती, विद्या भारती – समाज सेवा और शिक्षा क्षेत्र

इन संगठनों ने RSS के विचार और संस्कार को समाज के हर क्षेत्र तक पहुंचाया।

राजनीति में RSS की भूमिका

हालांकि RSS प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में सक्रिय नहीं है, लेकिन भारतीय राजनीति पर इसका गहरा प्रभाव रहा है।

जनसंघ से लेकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) तक RSS की भूमिका अहम रही।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह जैसे बड़े नेता RSS की पृष्ठभूमि से आते हैं।

आज केंद्र सरकार सहित कई राज्यों में RSS की विचारधारा से प्रेरित नेतृत्व काम कर रहा है।

विवाद और आलोचना

RSS की 100 साल की यात्रा विवादों से भी गुज़री।

आलोचकों ने RSS पर साम्प्रदायिकता का आरोप लगाया।

संघ का कहना है कि उसका लक्ष्य किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद को मजबूत करना है।

RSS “सर्वे भवन्तु सुखिनः” और “एकात्म मानववाद” को अपनी वैचारिक धुरी मानता है।

RSS शताब्दी वर्ष के प्रमुख कार्यक्रम

वर्ष 2025 में RSS ने शताब्दी वर्ष का आगाज किया।

देशभर में सेवा संकल्प अभियान चलाए जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर विशेष 100 रुपये का स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया, जिसमें भारत माता और RSS की झलक अंकित है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल: सेवा, संगठन और राष्ट्रभक्ति की शताब्दी यात्रा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 साल: सेवा, संगठन और राष्ट्रभक्ति की शताब्दी यात्रा

भविष्य की दिशा: अमृत काल की तैयारी

RSS ने अपने शताब्दी वर्ष में आह्वान किया है कि आने वाले 25 वर्षों को अमृत काल मानते हुए—

ग्राम विकास

पर्यावरण संरक्षण

शिक्षा और संस्कार

आत्मनिर्भर भारत
जैसे क्षेत्रों पर विशेष काम किया जाएगा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की 100 साल की यात्रा भारतीय समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए एक प्रेरणादायी गाथा है। जहां यह संगठन करोड़ों स्वयंसेवकों को सेवा और संस्कार से जोड़ता रहा, वहीं राजनीति, शिक्षा और संस्कृति पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ा।

RSS का शताब्दी वर्ष केवल एक संगठन का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, एकता और सेवा भावना का शताब्दी पर्व है।

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Rudra ji