विदेशी दौरों और बैठकों पर प्रतिबंध को लेकर सियासी टकराव तेज
नेता प्रतिपक्ष ने एक बार फिर केंद्र सरकार की विदेश नीति और कूटनीतिक कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया है कि सरकार उन्हें और अन्य विपक्षी नेताओं को विदेशी प्रतिनिधियों से मिलने की अनुमति नहीं देती। यह बयान ऐसे समय में आया है जब रूस के राष्ट्रपति के प्रस्तावित दौरे को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चाएँ चल रही हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विचारों का आदान-प्रदान और विभिन्न राजनीतिक दलों का संवाद बेहद आवश्यक होता है, लेकिन मौजूदा सरकार जानबूझकर इस प्रक्रिया को सीमित कर रही है।
उन्होंने आरोप लगाया कि यह रवैया सरकार की असुरक्षा को दर्शाता है। उनका कहना था कि एक मजबूत और आत्मविश्वासी सरकार संवाद से नहीं डरती, बल्कि विपक्षी विचारों को भी समान मंच देती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विदेश नीति किसी एक दल की बपौती नहीं है, बल्कि यह पूरे देश से जुड़ा विषय है, जिसमें सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की भूमिका होनी चाहिए।
नेता प्रतिपक्ष ने आगे कहा कि कई बार विदेशी प्रतिनिधिमंडल भारत दौरे पर आते हैं और स्वाभाविक रूप से वे देश के प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं से भी बातचीत करना चाहते हैं, ताकि भारत की राजनीतिक सोच और सामाजिक दृष्टिकोण को व्यापक रूप से समझ सकें। लेकिन सरकार द्वारा इस तरह की बैठकों को रोकना भारत की लोकतांत्रिक छवि को नुकसान पहुँचा सकता है।
इस बयान को लेकर सियासी हलकों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। सत्ता पक्ष के नेताओं का कहना है कि विदेशी मामलों में प्रोटोकॉल और कूटनीतिक मर्यादाएँ होती हैं, जिनका पालन करना हर सरकार की जिम्मेदारी होती है। उनका तर्क है कि ऐसे मुद्दों को राजनीतिक रंग देना उचित नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बयान से आने वाले दिनों में राजनीतिक बहस और तेज हो सकती है, खासकर तब जब महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय दौरे और समझौते होने वाले हों। यह मामला एक बार फिर यह सवाल खड़ा करता है कि विदेश नीति में विपक्ष की भूमिका कितनी होनी चाहिए और सरकार को किस हद तक संवाद के लिए दरवाजे खुले रखने चाहिए।












