दिल्ली में हवा पहले ही खतरनाक स्तर पर है, ऐसे में श्मशान घाटों पर उपले (कंडे) जलाने का प्रस्ताव नया विवाद बन गया है। नगर निगम की कुछ समितियों ने पारंपरिक अंतिम संस्कार को बढ़ावा देने के लिए यह सुझाव दिया था कि गैस और इलेक्ट्रिक चिता के साथ-साथ उपलों का विकल्प भी उपलब्ध कराया जाए।
हालांकि पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस प्रस्ताव को तुरंत खारिज करते हुए कहा कि इससे राजधानी की हवा और अधिक जहरीली हो सकती है।
दिल्ली में सर्दियों के शुरुआती दिनों से ही AQI लगातार “गंभीर” श्रेणी में बना हुआ है। ऐसे में उपलों के जलने से निकला PM2.5 और PM10 प्रदूषण को कई गुना बढ़ा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि उपलों के धुएं में बारीक कण, कार्बन, नाइट्रोजन ऑक्साइड और हानिकारक गैसें होती हैं, जो पहले से खराब हवा में और ज़हर घोलने का काम करेंगी।
दिल्ली सरकार के प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने भी संकेत दिए हैं कि ऐसा प्रस्ताव लागू होने पर इसे GRAP नियमों का उल्लंघन माना जाएगा, क्योंकि GRAP के तहत शहर में किसी भी तरह की ओपन बर्निंग प्रतिबंधित है।
इधर धार्मिक संगठनों और कुछ श्मशान समिति सदस्यों का कहना है कि उपले/लकड़ी पारंपरिक विधि का हिस्सा हैं और कई परिवार अभी भी इन्हीं से अंतिम संस्कार करना चाहते हैं।
नगर निगम ने फिलहाल इस प्रस्ताव पर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन विशेषज्ञ इसे “खतरनाक ट्रेंड” बता रहे हैं। उनका कहना है कि दिल्ली को प्रदूषण कम करने वाली तकनीकों की जरूरत है, न कि धुआं बढ़ाने वाले विकल्पों की।












