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धार्मिक स्वतंत्रता का संवैधानिक आधार : अनुच्छेद 26

धार्मिक स्वतंत्रता का संवैधानिक आधार : अनुच्छेद 26

धार्मिक स्वतंत्रता का संवैधानिक आधार : अनुच्छेद 26

नई दिल्ली।

भारतीय संविधान हर नागरिक और समुदाय को समान अधिकार प्रदान करता है। इन्हीं मौलिक अधिकारों में से एक है धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, जिसके अंतर्गत अनुच्छेद 26 विशेष महत्व रखता है। यह अनुच्छेद प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भाग को सामूहिक रूप से अपने धार्मिक मामलों के संचालन का अधिकार देता है।

अनुच्छेद 26 के अनुसार, धार्मिक समुदायों को यह स्वतंत्रता प्राप्त है कि वे अपनी धार्मिक और दान संबंधी संस्थाओं की स्थापना और संचालन कर सकें। इसके अलावा वे अपने धर्म से जुड़े विषयों का स्वतंत्र रूप से प्रबंधन कर सकते हैं। इतना ही नहीं, उन्हें चल और अचल संपत्ति अर्जित करने तथा उसका प्रबंधन करने का अधिकार भी दिया गया है। संविधान यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई भी धार्मिक संस्था कानून के दायरे में रहते हुए अपनी संपत्ति का प्रशासन स्वतंत्र रूप से कर सकती है।

हालांकि, यह अधिकार पूर्णतः निरपेक्ष नहीं हैं। संविधान ने स्पष्ट किया है कि धार्मिक संप्रदाय इन अधिकारों का उपयोग सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन रहकर ही कर सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर ऐसी कोई गतिविधि नहीं की जा सकती जिससे समाज में अव्यवस्था फैले, सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा हो या नैतिक मूल्यों को ठेस पहुँचे।

विशेषज्ञ मानते हैं कि अनुच्छेद 26 भारतीय लोकतंत्र का एक सशक्त स्तंभ है। यह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता को सुरक्षित करता है, बल्कि धार्मिक समुदायों को सामूहिक रूप से भी अपने धर्म और उससे संबंधित संस्थाओं के संचालन की गारंटी देता है। इससे विभिन्न धर्मों और पंथों को अपनी परंपराओं और धार्मिक गतिविधियों को संरक्षित और संवर्धित करने का अवसर मिलता है।

भारत जैसे बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक देश में यह अनुच्छेद सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक दोनों ही समुदाय अपने धार्मिक मामलों को बिना किसी भेदभाव और हस्तक्षेप के चला सकें। यही कारण है कि अनुच्छेद 26 को धार्मिक स्वतंत्रता की रीढ़ माना जाता है।

संविधान निर्माताओं ने इस अनुच्छेद के माध्यम से यह संदेश दिया कि धर्मनिरपेक्ष भारत में हर धर्म को समान स्थान और सम्मान मिलेगा। यही भारतीय लोकतंत्र की असली पहचान भी है।

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Rudra ji