केंद्र सरकार ने संसद में आज स्वीकार किया कि देश के कई प्रमुख हवाईअड्डों — जिनमें दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, अमृतसर, बेंगलुरु और चेन्नई शामिल हैं — के आसपास विमानों के GPS/ GNSS (Global Navigation Satellite System) संकेतों में अनियमितताएँ और संभावित स्पूफिंग/इंटरफेरेंस रिपोर्ट की गई हैं। यह वह समस्या है जिसमें सैटलाइट-आधारित नेविगेशन उपकरणों को गुमराह करने के लिए नकली सिग्नल प्रसारित किए जाते हैं।
DGCA (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) ने हाल ही में पायलटों, एयर-ट्रैफिक कंट्रोलरों और एयरलाइनों को निर्देश दिया है कि वे किसी भी असामान्य GNSS व्यवहार — जैसे पोजिशन एनॉमली, नेविगेशन त्रुटि या सिग्नल की integrit y गिरावट — को 10 मिनट के अंदर रीयल-टाइम में रिपोर्ट करें। यह कदम सुरक्षित उड़ानों के संचालन और घटनाओं के त्वरित पता लगाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
सरकार ने आश्वासन दिया है कि जब-जब सैटेलाइट नेविगेशन बाधित होता है, तो भारत का Minimum Operating Network (MON) — यानी जमीन-आधारित पारंपरिक नेविगेशन और सर्विलांस सिस्टम — उड़ान संचालन को सुरक्षित बनाए रखने में सक्षम रहता है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि स्पूफिंग की बढ़ती घटनाएँ एयरलाइन-नेविगेशन पर भरोसेमंदता के सवाल खड़े करती हैं और तकनीकी व संचालनात्मक तैयारियों को और मज़बूत करने की जरूरत दिखाती हैं।
इस परिप्रेक्ष्य में DGCA और एयरलाइनों ने ILS/रनवे-सक्षमताओं, बैकअप नेविगेशन उपायों और SOPs पर काम तेज कर दिया है — कुछ रनवेज़ पर ILS अपडेट्स को आगे बढ़ाने जैसे तात्कालिक कदम भी लिए जा रहे हैं ताकि RNP-आधारित लैंडिंग पर निर्भरता कम की जा सके। साथ ही, एयरलाइंस को संदिग्ध घटनाओं के रिकॉर्ड साझा करने और राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि GPS-निर्भरता को पूरी तरह खत्म करना व्यावहारिक नहीं है, पर विविध-स्तरीय सुरक्षा-जाल — मल्टी-कन्टीन्यूम नेविगेशन (सैटेलाइट + ग्राउंड राडार/ILS + इन-सर्विस SOPs), बेहतर रिपोर्टिंग और अंतरराष्ट्रीय समन्वय ही ऐसे खतरों से निपटने के प्रभावी उपाय हैं। जनता और यात्रियों को आश्वस्त करने के लिए अधिकारियों ने कहा है कि किसी भी सुरक्षा-जोखिम के मामले में बैक-अप सिस्टम विमान संचालन को सुरक्षित रखते हैं।












