राष्ट्रीय पठन दिवस: वांचे गुजरात से निकला एक राष्ट्रीय आंदोलन
नई दिल्ली | 19 जून 2025
19 जून – यह तिथि अब केवल एक तारीख नहीं रही, बल्कि देशभर में पढ़ने की संस्कृति के पुनर्जागरण का प्रतीक बन गई है। इस दिन को हर साल “राष्ट्रीय पठन दिवस” (National Reading Day) के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन की नींव गुजरात के एक अभिनव अभियान से जुड़ी है, जिसे शुरू किया था तब के मुख्यमंत्री और आज के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने?
एक ऐसा दिवस जो न केवल पुस्तकों से प्रेम का प्रतीक है, बल्कि भारतीय समाज में पढ़ने की आदत को संस्थागत रूप देने का प्रेरक भी है।
इस दिवस की प्रेरणा गुजरात के एक राज्य स्तरीय अभियान से मिली थी? वह अभियान था – “वांचे गुजरात”, जिसकी नींव 2010 में रखी गई थी।
📚 “वांचे गुजरात”: जब पढ़ना बना आंदोलन
वर्ष 2010 में, स्वर्णिम गुजरात उत्सवों के दौरान, तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक अभिनव पहल की – “वांचे गुजरात”, जिसका उद्देश्य था कि हर नागरिक, विशेषकर युवा वर्ग, में पढ़ने की आदत विकसित हो।
🔸 इस कार्यक्रम का उद्देश्य था कि हर नागरिक – खासकर बच्चे और युवा – रोज़ाना पढ़ने की आदत डालें।
🔸 अभियान ने स्कूलों, कॉलेजों, पुस्तकालयों, पंचायतों और सामाजिक संस्थाओं को जोड़कर एक राज्यव्यापी पठन क्रांति खड़ी कर दी।
🔸 लाखों बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों ने इसमें भाग लिया।
🔸 सार्वजनिक स्थलों पर “बुक कॉर्नर” बनाए गए।
🔸 स्कूली घंटों में “पठन काल” सुनिश्चित किया गया।
यह अभियान न केवल गुजरात तक सीमित रहा, बल्कि आगे चलकर राष्ट्रीय स्तर की प्रेरणा बना।
🇮🇳 राष्ट्रीय पठन दिवस: एक विचार, जो बना संकल्प
वर्ष 2017 में, प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री मोदी ने 19 जून को राष्ट्रीय पठन दिवस घोषित किया। यह दिन समर्पित है पी.एन. पणिक्कर को – जो केरल में लाइब्रेरी मूवमेंट और जनपठन संस्कृति के प्रणेता थे।
🔸 19 जून को तिथि चुनी गई।
🔸 1996 से केरल में मनाया जा रहा यह दिन अब राष्ट्रीय पठन दिवस के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
🔸 पूरे देश में इस दिन पठन सप्ताह और पठन माह जैसे आयोजन होते हैं।
🎯 पठन आंदोलन के उद्देश्य और व्यापक प्रभाव
✅ बच्चों में एकाग्रता, रचनात्मकता और भाषिक दक्षता का विकास
✅ ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में साक्षरता में वृद्धि
✅ डिजिटल युग में भी पुस्तकों के प्रति प्रेम
✅ समाज में सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का संवर्धन
✅ स्कूल ड्रॉपआउट रेट में गिरावट
📌 आज के दौर में क्यों ज़रूरी है “पढ़ना”?
जब युवा पीढ़ी इंस्टेंट कंटेंट और रील्स की ओर झुकाव रखती है, तब पढ़ना एक क्रांतिकारी कार्य बन जाता है। यह ध्यान, गहराई और विश्लेषण की संस्कृति को पुनर्जीवित करता है।
राष्ट्रीय पठन दिवस इस बात की याद दिलाता है कि ज्ञान केवल स्क्रीन से नहीं, पन्नों से भी आता है।
✍️ निष्कर्ष: पढ़ना ही भविष्य है
“वांचे गुजरात” ने जो बीज बोया था, वह अब राष्ट्रीय पठन दिवस के रूप में वटवृक्ष बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि ने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षा का आधार केवल स्कूल नहीं, समाज है।