देवता की संपत्ति मानी जाएगी मंदिर की आय, किसी बैंक या संस्था को बचाने में नहीं लगेगा पैसा
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और दूरगामी असर वाला फैसला सुनाते हुए कहा है कि मंदिरों में चढ़ाया गया धन देवता की संपत्ति होता है और इसका उपयोग किसी बैंक, कंपनी या सरकारी संस्था को बचाने के लिए नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस धन का प्रयोग केवल मंदिर के रखरखाव, धार्मिक कार्यों और भक्तों की सुविधा के लिए ही किया जाना चाहिए।
यह मामला उस याचिका से जुड़ा था जिसमें यह तर्क दिया गया था कि मंदिर ट्रस्ट के धन का इस्तेमाल एक संकटग्रस्त बैंक को आर्थिक सहायता देने के लिए किया जा सकता है। इस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि धार्मिक संस्थाओं को मिले दान और चढ़ावे का उद्देश्य केवल धार्मिक और सामाजिक सेवा तक सीमित है। इसे व्यावसायिक या वित्तीय संस्थानों के नुकसान की भरपाई के लिए नहीं लगाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि देवता को कानून की नजर में एक ‘ज्यूरिडिकल पर्सन’ यानी कानूनी व्यक्ति माना गया है और मंदिर की सम्पत्ति उसी देवता की मानी जाती है। ऐसे में ट्रस्ट के सदस्यों या सरकार को इस संपत्ति का मनमाना उपयोग करने का अधिकार नहीं है।
अदालत ने अपने आदेश में यह भी जोड़ा कि अगर मंदिर के धन का उपयोग गलत उद्देश्यों के लिए किया जाता है, तो यह न केवल ट्रस्ट के दायित्वों का उल्लंघन है बल्कि भक्तों की आस्था के साथ भी खिलवाड़ है। मंदिरों को मिलने वाला दान पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ दिया जाता है, इसलिए उसका संरक्षण और सही उपयोग भी उतना ही जरूरी है।
इस फैसले के बाद देशभर के धार्मिक ट्रस्टों, बैंकिंग संस्थानों और राज्य सरकारों को स्पष्ट संदेश मिल गया है कि धार्मिक संपत्तियों का उपयोग केवल उनके मूल उद्देश्य यानी पूजा, सेवा, रखरखाव और जनहित के कार्यों तक ही सीमित रहेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय भविष्य में धार्मिक संस्थाओं की संपत्ति से जुड़े मामलों में एक मजबूत कानूनी मिसाल बनेगा।












