बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण पर मौलाना मदनी का एतराज: लोकतंत्र के बुनियादी अधिकारों पर सवाल
पटना, 3 जुलाई 2025:
बिहार में मतदाता सूची की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर सियासी और सामाजिक हलकों में बहस तेज हो गई है। इस प्रक्रिया पर जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कड़ा एतराज जताते हुए इसे लोकतंत्र के बुनियादी अधिकारों पर हमला करार दिया है। उन्होंने इसे संविधान के खिलाफ बताते हुए तत्काल रद्द करने की मांग की है।
मौलाना मदनी की आपत्तियां
मौलाना मदनी ने कहा कि यह प्रक्रिया बहुत जल्दबाजी में शुरू की गई है। उन्होंने सवाल उठाया कि “आठ करोड़ से ज्यादा मतदाताओं की पुष्टि महज एक महीने में कैसे संभव है?” मदनी के अनुसार, इस प्रक्रिया में जिन दस्तावेजों की मांग की जा रही है, वे सीधे तौर पर कमजोर, प्रवासी, अल्पसंख्यक और वंचित वर्गों को प्रभावित कर सकते हैं।
उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर आपत्ति जताई कि:
1987 के बाद जन्मे लोगों से एक अभिभावक का दस्तावेज मांगा जा रहा है।
2004 के बाद जन्मे लोगों से दोनों माता-पिता के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।
मौलाना मदनी का कहना है कि जब यह प्रक्रिया राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) नहीं है, तो फिर ऐसी शर्तें क्यों थोपी जा रही हैं जो एनआरसी जैसी प्रतीत होती हैं? उन्होंने इसे एक खतरनाक कदम बताते हुए चेतावनी दी कि इससे लाखों लोगों का मताधिकार खतरे में पड़ सकता है।
प्रवासी मजदूरों और महिलाओं के लिए चिंता
मौलाना मदनी ने विशेष तौर पर असम की महिलाओं का जिक्र किया, जिन्होंने पहले भी एनआरसी जैसी प्रक्रियाओं में दस्तावेजों के अभाव में अपने अधिकार खो दिए थे। उन्होंने कहा कि देश में बड़ी संख्या में महिलाएं, खासकर गरीब और वंचित तबकों से, आज भी शिक्षा और दस्तावेजी साक्ष्य से वंचित हैं। अगर इस प्रक्रिया में सख्त दस्तावेजी शर्तें लागू की जाती हैं, तो ये महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी।
जमीयत उलमा-ए-हिंद की मांग
मौलाना मदनी ने चुनाव आयोग और सरकार से इस प्रक्रिया को तुरंत रोकने की मांग की है। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक संवेदनशील और पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए जिसमें किसी भी तबके के साथ अन्याय न हो।
लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा जरूरी
मौलाना मदनी का यह बयान देशभर में एक नई बहस को जन्म दे रहा है। वे इसे लोकतंत्र के बुनियादी अधिकार, यानी मताधिकार पर सीधा हमला मानते हैं। उनका मानना है कि अगर इस तरह की प्रक्रियाएं बिना पर्याप्त समय और जागरूकता के चलाई जाती हैं, तो इससे सामाजिक असंतुलन और व्यापक असंतोष पैदा हो सकता है।
बिहार में मतदाता सूची की समीक्षा को लेकर उठ रहे सवाल यह स्पष्ट करते हैं कि नागरिक अधिकारों से जुड़ी किसी भी प्रक्रिया को बेहद सावधानी और पारदर्शिता से चलाना जरूरी है। मौलाना मदनी के एतराज ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया है। अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग इस पर क्या प्रतिक्रिया देता है और क्या यह प्रक्रिया मौजूदा रूप में आगे बढ़ेगी या इसमें कुछ बदलाव किए जाएंगे।