नासा अंतरिक्ष से ज्वालामुखियों पर रख रहा बारीक नजर: विस्फोटों की सटीक भविष्यवाणी की तैयारी
वॉशिंगटन/नई दिल्ली: धरती पर मौजूद ज्वालामुखी सिर्फ धरातल को ही नहीं, बल्कि पूरी जलवायु व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। अब इन्हीं ज्वालामुखियों की गतिविधियों को समझने और उनके संभावित विस्फोटों की सटीक भविष्यवाणी करने के लिए नासा ने कमर कस ली है। अंतरिक्ष एजेंसी ने कई अत्याधुनिक सैटेलाइट्स और उपकरणों की मदद से धरती पर मौजूद सक्रिय ज्वालामुखियों की निगरानी शुरू कर दी है।
पेड़ की पत्तियां भी देती हैं संकेत
नासा की रिसर्च के मुताबिक, ज्वालामुखी के आसपास के जंगलों और पेड़-पौधों की पत्तियों में बारीक बदलाव आने लगते हैं। इन बदलावों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि ज्वालामुखी किस स्थिति में है। नासा अब इन पत्तियों में आने वाले बदलावों को अंतरिक्ष से पकड़ने की कोशिश कर रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्वालामुखीय गतिविधियों से पहले पौधों के क्लोरोफिल और रंग-रूप में बदलाव देखा जा सकता है।
हाईटेक सैटेलाइट्स कर रहे निगरानी
नासा ने कई हाई-रिजॉल्यूशन और मल्टी-स्पेक्ट्रल सैटेलाइट्स को ज्वालामुखी निगरानी में लगाया है:
लैंडसैट 8 और 9: धरती की हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरें खींचते हैं, जिससे ज्वालामुखी की सतह पर हो रहे बदलाव और राख के फैलाव का अंदाजा लगाया जा सकता है।
सेंटिनल-5P: सल्फर डाइऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों को ट्रैक करता है, जो ज्वालामुखी विस्फोट का संकेत हो सकती हैं।
GOES-R सीरीज: रियल-टाइम में ज्वालामुखीय विस्फोट और राख के बादलों की गतिविधियों को कैप्चर करता है।
MODIS (Moderate Resolution Imaging Spectroradiometer): वायुमंडल में फैली राख और एयरोसॉल को ट्रैक करता है, जिससे विस्फोट का क्षेत्रीय और वैश्विक असर समझा जा सके।
जलवायु और जीवन पर प्रभाव
ज्वालामुखीय विस्फोटों का असर केवल स्थानीय इलाकों तक सीमित नहीं होता। ये वैश्विक तापमान, वर्षा चक्र और यहां तक कि वायुमंडल की रासायनिक संरचना को भी प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही, आस-पास रहने वाले लाखों लोगों की जान-माल को भी खतरा हो सकता है।
भविष्य की तैयारी
नासा की यह पहल न केवल विज्ञान के लिहाज से महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे आपदा प्रबंधन और समय रहते बचाव कार्यों में भी मदद मिलेगी। इन सटीक आंकड़ों के सहारे सरकारें और संस्थाएं पहले से सतर्क हो सकेंगी।