लोकसभा की कार्यवाही के दौरान समाजवादी पार्टी के सांसद मोहिबुल्लाह नदवी के एक विवादित बयान ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। सदन में अपनी बात रखते हुए उन्होंने “शायद हमें जिहाद करना पड़ेगा” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया, जिसके बाद सत्ता पक्ष और कुछ विपक्षी दलों ने भी कड़ा विरोध दर्ज कराया। बयान के तुरंत बाद सदन में शोर-शराबा शुरू हो गया और कार्यवाही कुछ समय के लिए बाधित करनी पड़ी।
सत्ता पक्ष के सांसदों ने इस बयान को देश की संवेदनशीलता और सामाजिक सौहार्द के खिलाफ बताया। उनका कहना था कि इस तरह के शब्द संसद जैसे गरिमामय मंच पर किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं हैं। कुछ नेताओं ने इसे भड़काऊ करार देते हुए सांसद से सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की मांग भी की।
वहीं समाजवादी पार्टी की ओर से सफाई में कहा गया कि बयान को गलत संदर्भ में पेश किया जा रहा है। पार्टी नेताओं का कहना है कि सांसद का आशय संघर्ष या हिंसा से नहीं था, बल्कि वह सरकार की नीतियों के खिलाफ लोकतांत्रिक विरोध की बात कर रहे थे। उनका तर्क है कि “जिहाद” शब्द का इस्तेमाल उन्होंने प्रतीकात्मक रूप में किया, न कि किसी उग्र अर्थ में।
इस पूरे विवाद के बाद संसद के बाहर भी राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई। कई राष्ट्रीय नेताओं ने सोशल मीडिया के माध्यम से इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी। कुछ ने इसे अभिव्यक्ति की सीमाओं से जोड़कर देखा, तो कुछ ने इसे देश की एकता और शांति के लिए खतरा बताया।
संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि संसद में बोले गए शब्दों का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, इसलिए जनप्रतिनिधियों को बेहद संयम और सावधानी से अपनी बात रखनी चाहिए। मामले ने यह बहस भी तेज कर दी है कि राजनीतिक भाषणों में प्रयोग होने वाले शब्दों की मर्यादा क्या होनी चाहिए।












