राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू: देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति का संघर्ष, संकल्प और सफलता की ऐतिहासिक गाथा
नई दिल्ली, 20 जून —
भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कुछ घटनाएं न केवल राजनीतिक होती हैं, बल्कि वे राष्ट्र की आत्मा को गहराई से स्पर्श करती हैं। ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना है – श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद पर आसीन होना। यह केवल संवैधानिक दायित्व की पूर्ति नहीं, बल्कि एक संघर्षशील बेटी के आत्मबल, साहस और सेवा की एक ऐसी यात्रा है जो देश के हर वंचित वर्ग, विशेषकर आदिवासी समाज और महिलाओं के लिए आशा की ज्वाला बन चुकी है।
✦ एक साधारण गांव से राष्ट्रपति भवन तक
श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गांव में बिरंची नारायण टुडू नामक संताली आदिवासी परिवार में हुआ था। वे संथाल आदिवासी समुदाय से आती हैं, जो भारत के सामाजिक ताने-बाने में सबसे पिछड़े माने जाते रहे हैं। गरीबी, सीमित संसाधन और सामाजिक उपेक्षा – यह सब उनके जीवन की सच्चाई थी, लेकिन उनकी आंखों में सपनों की चमक थी, और मन में संकल्प की शक्ति।
वे एक सामान्य परिवार से थीं, जहां शिक्षा को विशेष सुविधा नहीं मानी जाती थी, लेकिन उन्होंने भुवनेश्वर के रामदेवी महिला कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर यह साबित कर दिया कि इच्छाशक्ति हर रुकावट को तोड़ सकती है। उन्होंने शिक्षिका के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, और फिर सामाजिक कार्यों से जुड़ते हुए राजनीति में प्रवेश किया।
✦ जनसेवा से राष्ट्रसेवा तक का सफर
1997 में वे पहली बार रायरंगपुर नगर पंचायत की पार्षद चुनी गईं। इसके बाद उन्होंने ओडिशा विधानसभा में दो बार विधायक के रूप में सेवा दी और राज्य सरकार में मंत्री पद पर रहते हुए शिक्षा, परिवहन, और पशुपालन जैसे महत्वपूर्ण विभागों का कार्यभार संभाला। उनका राजनीतिक जीवन साधारण नहीं था – उन्होंने अपने बेटे, पति और परिवार के अन्य सदस्यों को खोने जैसी व्यक्तिगत त्रासदियों को सहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
2015 से 2021 तक वे झारखंड की राज्यपाल रहीं – वह भी एकमात्र ऐसी राज्यपाल जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान संविधान की गरिमा को सर्वोपरि रखा और कई महत्वपूर्ण सामाजिक फैसलों में जनता के पक्ष में खड़ी रहीं।
✦ राष्ट्रपति बनना — आदिवासी समाज का गौरव क्षण
2022 में जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में एनडीए ने उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया, तो यह पूरे देश के लिए भावनात्मक क्षण था। यह केवल उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं थी, यह आदिवासी समाज की पीढ़ियों के संघर्ष, उपेक्षा और आकांक्षाओं की स्वीकृति थी।
श्रीमती मुर्मू का चुनाव एक संवैधानिक प्रक्रिया से कहीं बढ़कर था—यह ‘सशक्त नारी, सशक्त राष्ट्र’ की भावना को मूर्त रूप देने वाली ऐतिहासिक पहल थी। उनके जीवन ने यह सिद्ध किया कि अगर आत्मबल, शिक्षा और संकल्प हो, तो कोई भी पृष्ठभूमि सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती।
✦ सशक्त नारी की प्रतीक, भारत की आत्मा की प्रतिनिधि
श्रीमती मुर्मू केवल एक राजनीतिक पद नहीं संभाल रही हैं — वे नारी शक्ति, संविधान की गरिमा और भारत की समावेशी आत्मा का प्रतिनिधित्व करती हैं। जब वे पारंपरिक झारखंडी परिधान में शपथ ले रही थीं, तो वह दृश्य पूरे भारत को यह संदेश दे रहा था कि – अब कोई भी भारतीय “दूसरे दर्जे” का नागरिक नहीं है।
उनकी गरिमा, शांतिपूर्ण नेतृत्व शैली और जनभागीदारी की भावना आज राष्ट्रपति भवन की कार्य संस्कृति को नया आयाम दे रही है। वे हर उस लड़की के लिए उम्मीद की मिसाल हैं, जो गरीबी में जन्म लेती है लेकिन सपने ऊंचे देखती है।
✦ जन्मदिवस: सिर्फ बधाई नहीं, एक युगबोध का उत्सव
आज जब हम उनका जन्मदिन मना रहे हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति विशेष को बधाई देने का अवसर नहीं, बल्कि यह उन मूल्यों, विचारों और भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता का उत्सव है जिसमें हर नागरिक, हर समुदाय, हर महिला, हर बेटी के लिए संभावनाएं जीवित हैं।
नेशनल कैपिटल टाइम्स