रक्षाबंधन का पर्व भारतीय संस्कृति की उस अद्भुत परंपरा का हिस्सा है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को सम्मान, स्नेह और कर्तव्य की भावना से जोड़ता है। हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व न सिर्फ एक धागा बांधने की रस्म है, बल्कि भावनाओं का एक गहरा प्रवाह है।
रक्षाबंधन का ऐतिहासिक महत्व
हर साल राखी का धागा सिर्फ भाई-बहन को नहीं, बल्कि उन रिश्तों को भी जोड़ता है, जिनमें प्यार, त्याग और विश्वास का सच्चा बंधन होता है।
ऐसी ही एक पावन कथा जुड़ी है – राजा बलि और देवी लक्ष्मी से, जो आज भी रक्षाबंधन की आत्मा को जीवित रखे हुए है।
एक समय की बात है – राजा बलि, एक पराक्रमी और धर्मनिष्ठ असुर राजा, अपने दान और वचनबद्धता के लिए प्रसिद्ध थे। जब उन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तीनों लोक जीत लिए, तो देवताओं ने भगवान विष्णु से रक्षा की गुहार लगाई। विष्णु जी ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। बलि ने वचन दे दिया।
वामन ने पहले पग में पृथ्वी, दूसरे में आकाश नाप लिया। तीसरा पग रखने को स्थान नहीं बचा, तो बलि ने अपना सिर अर्पित कर दिया। प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने बलि को अमरत्व और पाताल लोक का अधिपति बना दिया — और स्वयं वचन दिया कि वे सदा पाताल में उसके द्वारपाल बनकर रहेंगे।
यहीं से शुरू होती है एक पत्नी की चिंता और प्रेम की कहानी।
भगवान विष्णु के पाताल में रहने से देवी लक्ष्मी अत्यंत व्यथित हुईं। उन्हें अपने प्रिय पति से दूर रहना असहनीय था। लेकिन वो जानती थीं कि बलि अपने वचन से पीछे नहीं हटेगा। ऐसे में उन्होंने एक युक्ति निकाली।
लक्ष्मीजी ने एक गरीब ब्राह्मणी का रूप धारण किया और बलि के द्वार पहुंचीं। उन्होंने कहा, “हे राजन्, मेरे पास अपना कोई नहीं है, रक्षा के लिए एक भाई की आवश्यकता है।” राजा बलि ने श्रद्धा से उन्हें बहन बनाकर राखी बंधवाई और वचन दिया – “बहन, जो चाहे मांग लो।”
लक्ष्मी जी ने कहा, “राजन, मुझे मेरे पति भगवान विष्णु चाहिए, जो आपके द्वारपाल बनकर यहां ठहरे हैं।” राजा बलि चौंक गए, लेकिन अपनी बहन को दिए वचन के कारण उन्होंने भगवान विष्णु को लौटने की अनुमति दे दी।
इस प्रकार एक पत्नी के प्रेम और एक भाई के वचन ने मिलकर रक्षाबंधन को रिश्तों की नई परिभाषा दी – जहाँ प्रेम, विश्वास और त्याग सबसे बड़ा बंधन बन गया।
आज रक्षाबंधन पर जब बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं, तो उसमें केवल सुरक्षा की कामना नहीं होती – उसमें भावनाओं का वह पवित्र धागा भी होता है, जो लक्ष्मी और बलि की कहानी में था।
रक्षाबंधन की कई कहानियों में से एक कहानी और है
रक्षाबंधन का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। पौराणिक कथाओं में इसकी कई रोचक कहानियाँ मिलती हैं। महाभारत में बताया गया है कि युद्ध के समय भगवान श्रीकृष्ण की उंगली से खून निकल गया था। द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी। भावुक होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें हमेशा रक्षा करने का वचन दिया। यही घटना रक्षाबंधन का आदर्श बन गई।
रक्षाबंधन का सामाजिक और भावनात्मक पहलू
रक्षाबंधन केवल एक पर्व नहीं, यह उस रिश्ते की याद है, जहां लड़ाई भी होती है और सबसे ज़्यादा परवाह भी। यह त्योहार हमें यह भी सिखाता है कि समय और दूरी चाहे जितनी भी हो, भाई-बहन का रिश्ता हमेशा दिल से जुड़ा रहता है।
आज जब जीवन भागदौड़ भरा हो गया है, रक्षाबंधन एक ऐसा अवसर बनकर आता है जब हम एक-दूसरे के लिए वक़्त निकालते हैं, बचपन की यादें ताजा करते हैं और अपने रिश्ते को फिर से मजबूत करते हैं।
आधुनिक संदर्भ में रक्षाबंधन
अब रक्षाबंधन सिर्फ भाई-बहन तक सीमित नहीं रहा। आज बहनें अपनी बहनों को भी राखी बांध रही हैं, और दोस्ती व सामाजिक सौहार्द का प्रतीक बन चुकी है। यह पर्व हमें एक-दूसरे की रक्षा, सम्मान और सहयोग का संकल्प लेने की प्रेरणा देता है।
आइए, इस रक्षाबंधन पर संकल्प लें कि हम न केवल एक-दूसरे की सुरक्षा करेंगे, बल्कि समाज में प्रेम, विश्वास और एकता का धागा भी मजबूत बनाएंगे।