ऑपरेशन सिंदूर” की कांवड़ लेकर निकले शिवभक्त: हरिद्वार में राष्ट्रभक्ति और श्रद्धा का अद्वितीय संगम
हरिद्वार: सावन की पावन कांवड़ यात्रा हर साल लाखों शिवभक्तों की आस्था का प्रतीक बनती है, लेकिन इस बार हरिद्वार की धरती पर कुछ ऐसा दृश्य देखने को मिला, जिसने श्रद्धा और राष्ट्रप्रेम – दोनों भावनाओं को एक साथ जीवंत कर दिया।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ नाम से कांवड़ लेकर निकले शिवभक्तों ने इस बार यात्रा में ऐसा रंग घोला कि हर किसी की नज़र उन पर ठहर गई। उनकी कांवड़ न केवल भक्ति से ओतप्रोत थी, बल्कि उसमें देशभक्ति की ऊर्जा भी स्पंदित हो रही थी।
कांवड़ में दिखा सैन्य गौरव और राष्ट्र प्रेम
इस विशेष कांवड़ दल ने अपनी कांवड़ को “ऑपरेशन सिंदूर – भारत की विजय यात्रा” की थीम पर सजाया था। इसमें भारतीय सेना, ब्रह्मोस मिसाइल, तिरंगा, और शहीद जवानों के चित्रों को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया था। शिवभक्तों ने भगवा वस्त्रों के साथ और देशभक्ति से भरे नारों के साथ अपनी यात्रा प्रारंभ की, जिनमें गूंज रहा था:
“बोल बम के साथ वंदे मातरम् भी!”
“जय भोलेनाथ! जय हिन्द!”
इस अनूठे समर्पण ने श्रद्धालुओं के बीच अलग ही उत्साह भर दिया।
हरिद्वार पुलिस भी हुई भावविभोर
जब यह कांवड़ हरिद्वार के मुख्य मार्गों से गुजरी, तो स्थानीय पुलिसकर्मी और अधिकारी भी इसकी थीम और संदेश से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। कई पुलिसवालों ने शिवभक्तों के साथ फोटो खिंचवाई, और उन्हें धन्यवाद दिया कि उन्होंने भक्ति यात्रा को राष्ट्र के गौरव से जोड़ा।
हरिद्वार पुलिस के एक अधिकारी ने कहा:
“यह पहली बार है जब हमने OperationSindoor थीम वाली कांवड़ देखी है। यह देशभक्ति और भक्ति का सुंदर संगम है। हम ऐसे प्रयासों का स्वागत करते हैं जो समाज को एक सकारात्मक संदेश दें।”
जनता के लिए बनी प्रेरणा
ऑपरेशन सिंदूर कांवड़ यात्रा ने यह सिद्ध कर दिया कि भक्ति केवल मंदिरों और मंत्रों तक सीमित नहीं है। जब श्रद्धा में राष्ट्रप्रेम मिल जाए, तो वह समाज को जागरूक करने का एक सशक्त माध्यम बन जाती है।
रास्ते भर लोग इस कांवड़ को देखकर “भारत माता की जय” और “हर हर महादेव” के नारों से वातावरण को गूंजायमान करते रहे। यह दृश्य न सिर्फ धार्मिक था, बल्कि सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना का उत्सव भी था।:
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के रूप में निकली यह कांवड़ यात्रा एक मिसाल बन गई है — जहां श्रद्धा, समर्पण और राष्ट्रभक्ति तीनों एक साथ चलते हैं। हरिद्वार की धरती पर यह दृश्य न केवल ऐतिहासिक बन गया, बल्कि यह आने वाले वर्षों की कांवड़ यात्राओं के लिए एक नई प्रेरणा भी बन गया है।