लागत वसूली के बाद भी टोल वसूली पर संसदीय समिति की नाराज़गी
नई दिल्ली —
देशभर में टोल प्लाज़ाओं से गुजरने वाले लाखों यात्रियों के लिए राहत की उम्मीद जागी है। संसदीय समिति ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में चिंता जताई है कि कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सड़कों पर परियोजना की लागत वसूली पूरी हो जाने के बावजूद टोल टैक्स की वसूली जारी है। समिति का मानना है कि यह व्यवस्था न केवल आम नागरिकों की जेब पर अतिरिक्त बोझ डाल रही है, बल्कि टोल प्रणाली की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
टोल दरों की वार्षिक बढ़ोतरी पर सवाल
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि टोल दरों में हर साल होने वाली बढ़ोतरी के लिए कोई स्पष्ट और पारदर्शी आधार नहीं है। समिति के मुताबिक, यह बढ़ोतरी आमतौर पर महंगाई दर या सड़क रखरखाव लागत से कहीं अधिक होती है, जिससे यात्रियों में असंतोष बढ़ता है।
स्वतंत्र प्राधिकरण की सिफारिश
स्थिति को सुधारने के लिए समिति ने सुझाव दिया है कि एक स्वतंत्र प्राधिकरण का गठन किया जाए, जो टोल दरों की समीक्षा करे, दर निर्धारण में पारदर्शिता लाए और यह सुनिश्चित करे कि परियोजना की पूरी लागत और रखरखाव खर्च की भरपाई हो जाने के बाद टोल वसूली तुरंत बंद हो।
लाखों लोगों पर सीधा असर
यह मुद्दा इसलिए अहम है क्योंकि देशभर में रोज़ाना लाखों वाहन चालक टोल प्लाज़ाओं से गुजरते हैं। अतिरिक्त वसूली सीधे उनकी जेब पर असर डालती है, विशेषकर उन लोगों पर जो रोजाना लंबी दूरी तय करते हैं या व्यावसायिक परिवहन से जुड़े हैं। यदि समिति की सिफारिशों पर अमल होता है, तो न केवल लोगों को आर्थिक राहत मिलेगी बल्कि टोल प्रणाली में भरोसा और पारदर्शिता भी बढ़ेगी।
सरकार की प्रतिक्रिया पर नज़र
अब निगाहें केंद्र सरकार पर टिकी हैं कि वह इस सिफारिश को लागू करने की दिशा में क्या कदम उठाती है। परिवहन मंत्रालय पहले भी कह चुका है कि कई परियोजनाएं पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल में होती हैं, जहां टोल अवधि अनुबंध के तहत तय होती है। लेकिन, समिति का कहना है कि अनुबंध की शर्तें भी जनता के हित को ध्यान में रखकर संशोधित की जानी चाहिए।
अगर इन सुझावों पर जल्द कार्रवाई होती है, तो यह न केवल यात्रियों के लिए बड़ी राहत होगी, बल्कि देश में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के प्रति जनता के भरोसे को भी मजबूत करेगी।