धराली आपदा में जीवन की तलाश – ‘फेंटम’ और ‘कोको’ का साहसिक मिशन
धराली, उत्तराखण्ड – हाल ही में आई आपदा ने धराली क्षेत्र में तबाही का मंजर छोड़ दिया है। टूटे मकान, बिखरे पत्थर, गाद और मलबे के ढेर के बीच हर कोई बेसब्री से इंतजार कर रहा है – कहीं से कोई जीवन की आहट सुनाई दे जाए। ऐसे कठिन समय में उत्तराखण्ड पुलिस की स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (SDRF) के दो फुर्तीले और बहादुर श्वान, ‘फेंटम’ और ‘कोको’, राहत और बचाव कार्य में सबसे आगे हैं।
ये दोनों विशेष रूप से प्रशिक्षित रेस्क्यू डॉग हर पत्थर, हर दरार और हर गंध को बारीकी से टटोलते हैं। इनके पास ऐसी सूंघने की क्षमता है, जो इंसानी आंखों और कानों की सीमा से कहीं आगे है। ‘फेंटम’ और ‘कोको’ न सिर्फ मलबे में दबे लोगों को ढूंढने में मदद कर रहे हैं, बल्कि राहत कर्मियों को भी सही दिशा में खोजबीन करने में मार्गदर्शन दे रहे हैं।
कैसे काम करते हैं रेस्क्यू डॉग?
SDRF के ये प्रशिक्षित श्वान विशेष प्रशिक्षण से गुजरते हैं, जिसमें उन्हें अलग-अलग परिस्थितियों में गंध पहचानने और लोकेशन ट्रैक करने की कला सिखाई जाती है। वे जीवित और मृत व्यक्तियों की गंध में फर्क कर सकते हैं, और कई बार उनकी मदद से ऐसे लोगों को बचाया गया है, जो मलबे के भीतर घंटों या दिनों तक फंसे रहे।

धराली में चुनौतियां
धराली का इलाका पहाड़ी और दुर्गम है। तेज बहाव वाले झरनों, फिसलन भरी चट्टानों और लगातार गिरते पत्थरों के बीच SDRF की टीम को आगे बढ़ना आसान नहीं है। लेकिन ‘फेंटम’ और ‘कोको’ बिना थके अपने प्रशिक्षकों के साथ मलबे पर चढ़ते-उतरते रहते हैं। उनकी एक-एक भौंक राहत दल के लिए संकेत होती है कि यहां कुछ है – हो सकता है कोई इंसान अब भी सांस ले रहा हो।
उम्मीद की किरण
ऐसे समय में, जब चारों ओर निराशा का माहौल हो, इन दोनों डॉग्स की मौजूदगी राहत कर्मियों और प्रभावित परिवारों के लिए उम्मीद की किरण बनती है। SDRF के अधिकारी मानते हैं कि इन डॉग्स की तेज सूंघने की क्षमता और त्वरित प्रतिक्रिया कई जिंदगियां बचाने में निर्णायक साबित हो सकती है।
धराली आपदा ने हमें एक बार फिर यह दिखा दिया है कि बचाव कार्य सिर्फ इंसानों का साहस ही नहीं, बल्कि हमारे चार-पैर वाले बहादुर साथियों की निष्ठा और समर्पण पर भी टिका है।
‘फेंटम’ और ‘कोको’ आज सिर्फ डॉग स्क्वॉड के सदस्य नहीं, बल्कि धराली के असली हीरो हैं।
नेशनल कैपिटल टाइम्स