विश्व संस्कृत दिवस: भारतीय संस्कृति की आत्मा को संजोने का संकल्प
नई दिल्ली।
विश्व संस्कृत दिवस उत्साहपूर्वक मनाया जाता रहा है। हर वर्ष यह दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन आता है, जो रक्षाबंधन के दिन पड़ा। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत का पुनर्जागरण करना और इसकी समृद्ध साहित्यिक, दार्शनिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखना है।
संस्कृत को भारतीय ज्ञान परंपरा की जननी और देववाणी (देवताओं की भाषा) कहा जाता है। यह वेद, उपनिषद, महाकाव्य, शास्त्र और पुराणों की मूल भाषा रही है। वैदिक काल से लेकर आज तक, संस्कृत भारतीय संस्कृति की रीढ़ मानी जाती है। पहला विश्व संस्कृत दिवस वर्ष 1969 में मनाया गया था, और तब से हर साल यह दिन लोगों को इस भाषा के महत्व और इसकी वैश्विक विरासत से जोड़ने का काम करता है।
विश्व संस्कृत दिवस के अवसर पर देशभर में श्लोक वाचन, भाषण प्रतियोगिताएं, नाट्य प्रस्तुति, संस्कृत संगोष्ठियां और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। विद्यालय, विश्वविद्यालय और सांस्कृतिक संस्थान इसमें बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के साथ-साथ भाषा प्रेमी भी संस्कृत के प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं।
संस्कृत का महत्व और ऐतिहासिक भूमिका
संस्कृत केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म की आत्मा है। वेदों, उपनिषदों, महाभारत, रामायण और अनेकों शास्त्र इसी भाषा में रचे गए। भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 आधिकारिक भाषाओं में संस्कृत भी है, और इसे भारत की छह शास्त्रीय भाषाओं में गिना जाता है।
संस्कृत का महत्व प्राचीन विश्वविद्यालयों – नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला – से भी झलकता है, जहां देश-विदेश से विद्यार्थी इसे पढ़ने आते थे। धार्मिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से यह भाषा मध्य एशिया, चीन, जापान, तिब्बत, श्रीलंका, कंबोडिया और इंडोनेशिया तक पहुंची।
विदेशों में संस्कृत की गूंज
आज भी संस्कृत जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, नेपाल, जापान, रूस, फ्रांस और स्विट्जरलैंड समेत कई देशों में पढ़ाई जाती है। वहां इसे दक्षिण एशियाई अध्ययन, इंडोलॉजी, भाषाविज्ञान और धार्मिक अध्ययन से जुड़े पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाता है। कई विदेशी विद्वान संस्कृत ग्रंथों का अध्ययन कर भारतीय दर्शन और संस्कृति को समझने का प्रयास कर रहे हैं।
संस्कृत श्लोक और उसका अर्थ
“सा विद्या या विमुक्तये”
(श्रीमद्भागवत पुराण)
अर्थ: वह विद्या ही सच्ची है जो मनुष्य को अज्ञान, बंधन और दुखों से मुक्त कर दे।
यह श्लोक संस्कृत की शिक्षाप्रद और जीवनदायी दृष्टि को दर्शाता है, जो केवल भाषा तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के उच्च आदर्शों को भी संजोए हुए है।
संरक्षण की जिम्मेदारी
विशेषज्ञों का मानना है कि संस्कृत का संरक्षण केवल शैक्षणिक कार्य नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दायित्व है। नई पीढ़ी को इसमें रुचि जगाने के लिए शिक्षा प्रणाली में नवाचार, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सामग्री और रचनात्मक माध्यमों का इस्तेमाल करना जरूरी है।
संस्कृत दिवस हमें यह याद दिलाता है कि यह भाषा सिर्फ अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य की सांस्कृतिक धरोहर भी है। इसके संरक्षण और संवर्धन में हर नागरिक की भागीदारी आवश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इसकी ज्ञान-गंगा से लाभान्वित हो सकें।
नेशनल कैपिटल टाइम्स