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आतंकी हमले के बाद घाटी में पहला बड़ा आयोजन: खीर भवानी मेल

आतंकी हमले के बाद घाटी में पहला बड़ा आयोजन: खीर भवानी मेल

आतंकी हमले के बाद घाटी में पहला बड़ा आयोजन: खीर भवानी मेले के लिए सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त

गांदरबल, जम्मू-कश्मीर।
हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद जहां घाटी का माहौल तनावपूर्ण हो गया था, वहीं अब कश्मीर में पहला बड़ा धार्मिक आयोजन होने जा रहा है। यह आयोजन है खीर भवानी मेले का, जो मंगलवार को गांदरबल, कुलगाम, कुपवाड़ा और अनंतनाग के विभिन्न रागन्या भगवती मंदिरों में एक साथ आयोजित किया जाएगा।

हर साल जेष्ठ अष्टमी के पावन अवसर पर आयोजित होने वाला यह मेला कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए अत्यंत श्रद्धा और आस्था का केंद्र होता है। मुख्य आयोजन गांदरबल के तुलमुल्ला स्थित खीर भवानी मंदिर में होता है, जहां दूर-दूर से श्रद्धालु माता रागन्या देवी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

हालांकि, इस वर्ष का मेला ऐसे समय में हो रहा है जब घाटी में हाल ही में हुए आतंकी हमले के चलते सुरक्षा स्थिति काफी संवेदनशील बनी हुई है। यही वजह है कि प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों ने इसे लेकर विशेष सतर्कता बरती है।

रविवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक नलिन प्रभात ने खीर भवानी मंदिर पहुंचकर सुरक्षा तैयारियों की समीक्षा की। उन्होंने मंदिर में दर्शन किए और स्थानीय प्रशासन तथा पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक कर सुरक्षा प्रबंधों को अंतिम रूप दिया।

पुलिस सूत्रों के अनुसार, मेले के दौरान किसी भी प्रकार की असामाजिक गतिविधि से निपटने के लिए बहुस्तरीय सुरक्षा घेरा तैयार किया गया है। संवेदनशील स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन निगरानी, कंट्रोल रूम और क्विक रिएक्शन टीमों की तैनाती की गई है। श्रद्धालुओं के वाहनों की गहन चेकिंग के लिए कई नाके लगाए गए हैं।

इस आयोजन के लिए गांदरबल के अलावा कुलगाम के मंजगाम और देवसर, कुपवाड़ा के टिक्कर, और अनंतनाग के लोगरीपोरा में भी विशेष इंतजाम किए गए हैं। सभी स्थानों पर स्थानीय प्रशासन ने सफाई, चिकित्सा सुविधा, पेयजल और बिजली आपूर्ति जैसी व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त किया है।

खीर भवानी मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि घाटी के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने की प्रतीक भी है। आतंकी घटनाओं के बाद उत्पन्न तनावपूर्ण वातावरण में यह मेला शांति, भाईचारे और सामान्य स्थिति की वापसी का संकेत देने वाला अवसर बन गया है।

श्रद्धालुओं में भी मेले को लेकर उत्साह है। कई कश्मीरी पंडित परिवार जो वर्षों पहले विस्थापित हुए थे, वे भी इस अवसर पर घाटी लौट रहे हैं।

यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मेला घाटी में विश्वास और सौहार्द की भावना को कितना मजबूत कर पाता है।

 

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